मुश्किल हालात में, लेकिन लगन और मेहनत के बूते इस युवक ने उसी कार्यालय में अफसर बन दिखाया, जहां उसके पिता ने उम्र भर चपरासी की नौकरी की। धनबाद, झारखंड के रहने वाले इस युवक देव कुमार वर्मा की कहानी बस इतनी ही नहीं है। कहानी तो यहां से शुरू होती है।
पहले खुद बने काबिल : देव कुमार के पिता भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। गरीबी के कारण देव की पढ़ाई ठेठ सरकारी स्कूल में हुई। लेकिन अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने हर बाधा को पार किया। अंग्रेजी सुधारी। एमबीए किया। प्रतियोगी परीक्षा पास की। और अंतत: कोल इंडिया में नौकरी हासिल की। वह बीसीसीएल मुख्यालय में डिप्टी मैनेजर बने। इसी दफ्तर में उनके पिता कभी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हुआ करते थे।
इंग्लिश मीडियम पाठशाला: स्कूल का नाम भले ही उन्होंने पाठशाला रखा। लेकिन यह है पूरी तरह इंग्लिश मीडियम। नर्सरी से पांचवीं तक। और पूरी तरह निश्शुल्क। प्राचार्य और पांच योग्य शिक्षक नियुक्त हैं। ये सभी शिक्षक बड़े पब्लिक स्कूलों में पढ़ाने की पात्रता रखते हैं। सबसे बड़ी बात कि यह पाठशाला देव ने अपने उसी पैतृक घर में खोली है, जहां उनका बचपन बीता। यहां इसलिए क्योंकि यह घर गरीबों की बस्ती में है। देव अब कहीं और किराये के मकान में रहते हैं। पाठशाला ने दो वर्ष पूरे कर लिए हैं। अब 100 से अधिक बच्चे यहां निश्शुल्क शिक्षा हासिल कर रहे हैं। बच्चों को दी जा रही शिक्षा का स्तर किसी मायने में कमतर नहीं है। बल्कि यह तो किसी बड़े पब्लिक स्कूल को भी पीछे छोड़ रहा है। इस स्कूल की खासियत पर झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास भी मुरीद हैं। उन्होंने ट्वीट कर देव कुमार के प्रयास को सराहा है। यहां पढ़ा रहीं शिक्षिका आंचल विश्वकर्मा कहती हैं, यहां हम शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देते हैं। बच्चे भी तेजी से चीजें सीख रहे हैं। इस स्कूल में पढ़ाने से मेरी भी समाजिक प्रतिष्ठा बढ़ी है।
कैसे होता है संचालन: स्कूल के प्राचार्य जेपी सिंह ने बताया, हम यहां बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण निश्शुल्क शिक्षा, कॉपी-किताब, यूनीफॉर्म के साथ ही दूर से आने वाले बच्चों के लिए मुफ्त वाहन सेवा भी उपलब्ध कराते हैं। पाठशाला के संचालन का पूरा जिम्मा देव ही संभालते हैं। वे अपनी नौकरी भी कर रहे हैं और पाठशाला का प्रबंधन भी। खर्च का बड़ा हिस्सा वे स्वयं वहन करते हैं। हालांकि अब कुछ मित्र भी हाथ बंटाने लगे हैं। पाठशाला की लोकप्रियता इस कदर बढ़ गई है कि दूरदराज के पिछडे़ इलाकों, झुग्गियों और गांवों से भी बच्चे यहां पढ़ने के लिए आ रहे हैं।
अब दूसरों को बना रहे काबिल
काबिलियत। बेहतर नौकरी। संसाधन। सुविधाएं। इज्जत और स्थायित्व। यह सब हासिल कर लेने के बाद देव को किसी और चीज की दरकार नहीं थी। वह अपनी गरीबी को बहुत पीछे छोड़ चुके थे। लेकिन गरीबी ने उन्हें जो बड़ा पाठ सिखाया था। वह उन्हें याद रहा। इंसानियत का पाठ। इस बड़े पाठ ने उन्हें यह पाठशाला खोलने के लिए प्रेरित किया। गरीब घरों के बच्चों के लिए एक ऐसी पाठशाला, जहां ये बच्चे अंग्रेजी माध्यम में और शतप्रतिशत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें।
-झारखंड के मुख्यमंत्री कर चुके हैं इस अंग्रेजी मीडियम स्कूल की तारीफ
-100 बच्चों को दी जा रही निश्शुल्क प्राथमिक शिक्षा
अपने घर के आसपास रहने वाले गरीब घरों के बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए कुछ करना चाहता था। कोल इंडिया में नौकरी मिलने के बाद यह स्कूल खोला।- देव कुमार वर्मा, पाठशाला, संचालक